थैलीसीमिया
थैलेसीमिया
आज यानी 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह एक अत्यंत ही गंभीर बीमारी है, और इससे इसके विषय में जानकारी ही इससे बचाव हैं। केवल विवाह से पूर्व लड़के-लड़की के रक्त की जांच हो, और यदि जांच में दोनों के रक्त में माइनर थैलेसीमिया पाया जाए तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना बन जाती है।
थैलीसीमिया से बचाव की दो स्थिति
👉प्रथम उपाय: इस स्थिति में गर्भवती माँ के गर्भ में 3 माह होने पर गर्भ में पल रहे शिशु की जांच अवश्य कराएं। जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
👉दूसरा उपाय: दूसरा उपाय यह कि यदि विवाहोपरांत माता-पिता को पता चले कि शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित है तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति से शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है।
थैलेसीमिया एक प्रकार की वंशानुगत बीमारी होती है। इस रोग में शरीर के हीमोग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है, परिणामस्वरूप खून की कमी हो जाती है।मरीजों के शरीर में लाल रक्त कनिका (Red Blood Cells) औसतन 120 दिन की जगह 20 दिन के ही रह पाते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव शरीर के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है। हीमोग्लोबिन कम होने से कमजोरी और दूसरी बीमारियों होने की आशंका अधिक बढ़ जाती है।उचित समय पर इलाज न होने पर पीड़ित की मौत तक हो सकती है।
दो तरह का होता है थैलेसीमिया
दो तरह का होता है थैलेसीमिया
थैलेसीमिया दो प्रकार के होते हैं।
👉माइनर थैलेसीमिया और
👉मेजर थैलेसीमिया।
माइनर थैलेसीमिया: यह उन बच्चों को होता है, जिनके माता या पिता कोई एक इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।
इसमें केवल एक जींस प्रभावित होता है। इसमें मरीज को कम ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है।
👉माइनर थैलेसीमिया और
👉मेजर थैलेसीमिया।
माइनर थैलेसीमिया: यह उन बच्चों को होता है, जिनके माता या पिता कोई एक इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।
इसमें केवल एक जींस प्रभावित होता है। इसमें मरीज को कम ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है।
👉मेजर थैलीसीमिया: यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। इससे दोनों जींस खराब हो जाते है जिसके कारण मरीज को हर महीने ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत में इस बीमारी से पीड़ित प्रतिवर्ष लगभग 7K से 10K तक बच्चों का जन्म होता है। अकेले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इससे पीड़ित लोगों की संख्या 1,500 हैं। पाकिस्तान में यह संख्या 1 लाख तो भारत में करीब 10 लाख हैं।
कैसे करें थैलेसीमिया की पहचान👇👇👇👇
👉सूखता चेहरा
👉लगातार बीमार रहना
👉वजन ना बढ़ना
👉लगातार बीमार रहना
👉वजन ना बढ़ना
👉दुर्बलता
👉थकान
👉अस्थि विकृति, विशेष रूप से चेहरे पर
👉पीली उपस्थिति या पीले रंग की त्वचा
👉धीमी विकास दर
👉संक्रमण का खतरा बढ़ता है
👉आयरन अधिभार
👉हृदय की समस्याएं
👉थकान
👉अस्थि विकृति, विशेष रूप से चेहरे पर
👉पीली उपस्थिति या पीले रंग की त्वचा
👉धीमी विकास दर
👉संक्रमण का खतरा बढ़ता है
👉आयरन अधिभार
👉हृदय की समस्याएं
बचाव व सावधानी:
📌विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ।
📌गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएँ।
📌रोगी की हीमोग्लोबिन ११ या १२ बनाए रखने की कोशिश करें।
📌समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें।
क्या है इसका इलाज -
👉ब्लड ट्रांसफ़्यूजन
👉दवाएं और पूरक
👉प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए संभव सर्जरी
👉दवाएं और पूरक
👉प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए संभव सर्जरी
Prashant Bharti
B4Deo ; Blood 4 Bihar & Jharkhand
B4Deo ; Blood 4 Bihar & Jharkhand
Thanks for this detailed knowledge....
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